Tuesday, October 30, 2007

स्त्री की मर्यादा

क्या तुमने कभी
तथाकथित मर्यादा के नाम पर
अन्दर ही अंदर किसी अंतर्द्वंद से जूझती
एक स्त्री के अंतर्मन की पीड़ा समझने की कोशिश की है।।

मुझे नहीं पता कि
तुम्हारा जबाव क्या होगा।
तुम हमेशा की तरह,
इस सवाल के मौन प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा करोगे,
या फिर ये कहकर टाल जाओगे कि
एक स्त्री की पीड़ा केवल वही जान सकती है।।

पर जबाव चाहे जो भी हो,
तुम कहो या कि मौन रहो।
हर स्त्री की जिंदगी का यह शाश्वत सत्य है,
जिससे शायद तुम भी इंकार नहीं करोगे।।

कि यदि वो वर्जनाओं के टूटने के डर से
आक्रांत हो उठती है,
तो रिश्तों को तोड़ने का इल्जाम उसी पर लगता है।
और यदि अपने दर्द को
अपने ही भीतर समेटने की कोशिश करती है,
तो उसका परिणाम भी उसे ही भुगतना पड़ता है।।

3 comments:

Manish Kumar said...

अच्छा लिखा है आपने..

परमजीत सिहँ बाली said...

नारी ह्रदय की संवेदना को बखूबी प्रस्तुत किया है।ज्यादातर लोग समझ कर भी समझना नही चाहते।


कि यदि वो वर्जनाओं के टूटने के डर से
आक्रांत हो उठती है,
तो रिश्तों को तोड़ने का इल्जाम उसी पर लगता है।
और यदि अपने दर्द को
अपने ही भीतर समेटने की कोशिश करती है,
तो उसका परिणाम भी उसे ही भुगतना पड़ता है।।

aarsee said...

दर्द है और खुद से डर है और शायद....सबके साथ।