Wednesday, March 2, 2011

कीमत

कीमत
वो रोती रही, चिल्लाती रही। 'मां, मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है। प्लीज मुझे दो हिस्सों में मत बांटों। मैं नहीं जी पाउंगी। प्लीज, मुझे समझने की कोशिश करो।' पर वहां उसकी भावनाओं को समझने वाला कोई नहीं था। कोई भी नहीं।

दीदी ने कहा था कि -'घबराओ मत, मैं हूं ना। समय आने पर सब संभाल लूंगी। मां को मना लूंगी कि वो सत्यम को अपने दामाद के रूप में अपना ले। अपने प्यार पर और मेरे विश्वास पर भरोसा रखो।' लेकिन आज दीदी भी मौन खड़ी थी। मां को मनाना तो दूर, उलटे वो मंजरी और सत्यम के रिश्ते की खिलाफत पर उतर आई थी। 'मंजरी , अपनी जिद के आगे मां की जान मत लो। और कितना छलोगी मां को। वैसे भी बहुत धोखा किया है तुमने उसके साथ। अब तो उसे चैन से जी लेने दो। ये प्यार-व्यार कुछ भी नहीं होता। भाग्य में जिसके साथ जुड़ना लिखा होता है, उसके साथ ही जीवन की डोर बंधती है। और शादी के बाद प्यार भी हो जाता है। बाकी सारी बातें बकवास हैं। उनका कोई मतलब नहीं है।'

शायद दीदी अपनी जगह सही थीं। पर मंजरी का क्या? उसने तो सिर्फ और सिर्फ सत्यम से प्यार किया था, बहुत प्यार और उस प्यार पर किसी दूसरे का अधिकार इस जनम में तो नहीं हो सकता। जमाने की नजरों में सत्यम से प्यार कर उसने भले ही गुनाह किया हो, पर वो जानती है कि सत्यम का प्यार उसके लिए जिंदगी का अनमोल तोहफा है। वो फैसला कर चुकी थी कि सत्यम के सिवा कोई और उसकी आत्मा तो क्या उसके शरीर तक भी नहीं पहुंच सकता। चाहे इसकी कोई भी कीमत उसे चुकानी पड़े।

शादी के जोड़े में सजी मंजरी एक बेजान लाश से ज्यादा कुछ भी नहीं थी। ना चेहरे पर हंसी और न ही शादी की कोई रौनक। अस्पताल में मौत से जूझ रही मां की जान बचाने के लिए ब्याह के समझौते को उसने स्वीकार जो किया था। मां की खुशी और जिंदगी के लिए अपनी जान न्यौछावर करने में मंजरी ने उफ तक नहीं की। सत्यम के लिए खुद से किया वादा भी याद था उसे। उसके मन, शरीर और आत्मा पर सिर्फ सत्यम का अधिकार है और वो इस जनम में यह हक किसी और को नहीं सौंप सकती।

मंजरी की विदाई के बाद मां के साथ ही सभी घरवालों ने राहत की सांस ली। अंत भला, तो सब भला। चाहे जैसे भी, पर घर की इज्जत बच गई। पापा के नाम का सम्मान बच गया। समाज यह नहीं कह पाया कि देखो मां-पापा ने पढ़ने और नौकरी करने घर से बाहर क्या भेजा,बेटी ने तो गुल ही खिलाने शुरू कर दिए। दूसरे जात के लड़के से इश्क लड़ाकर खानदान का नाम ही डूबा दिया। पर ये क्या, सुकून के इस पल को मोबाइल की एक रिंग ने बेचैनी से भर दिया। मंजरी के सुसराल से फोन था-'आपकी बेटी अब इस दुनिया में नहीं है। पता नहीं उसे क्या हुआ, सुबह शरीर ठंडा पड़ा था। हाय, दुख का कौन सा पहाड़ हमारे परिवार पर टूट पड़ा। मंजरी की लाश पोस्मार्टम के लिए अस्पताल ले गए है। आपलोग जल्दी से आ जाइए।'