सृष्टि की सम्पूर्णता मैं, आधी क्यों पहचान मेरी।
हौसले परवान पर, फिर भी आधी उड़ान मेरी।।
आधी दुनिया, आधी जमीं, आधा फलक मेरा जहां।
मेरे हिस्से मे ही क्यों, आधा-अधूरा सब यहां।।
आधी आबादी कहकर ये दुनिया, देती मुझे आवाज है।
आधे पहर में सिमटे ज्यों, ख्वाबों के परवाज हैं।।
आधी की अधिकारिणी मैं, आधी क्यों दास्तान मेरी ।
सृष्टि की सम्पूर्णता मैं, फिर भी आधी पहचान मेरी।।