Sunday, March 8, 2009

लाडो

मा मैं तेरी लाडो एक बात बताओ अम्मा
समझ न आए मुझको तुम समझाओ अम्मा

मुख मेरा देख देख कर क्या सोचा करते थे बाबा
मैं वंश नही हू उनका ये क्यो कहते थे बाबा

क्यो मेरे जनम से पहले ही मुझे मारने की तैयारी थी
क्यो साँसे देने को मुझको तुमने जान अपनी बारी थी

मैने पहली बार कदम जब तेरे जीवन मे रखा था
खोलकर अधखुले नयन ममता का अमृत चखा था

क्यों तुम खुश होकर भी अम्मा आँखों मे आँसू लाती थी
मेरे बारे मे सोच सोच कर क्यो इतना घबराती थी

बाबा की उंगली थाम कर जब मैने चलना सीखा था
क्यो अपने घर से परिचय मेरा अनजाने सरीखा था

क्यो भाई के जैसे बाहर मैं खेल नही सकती थी मा
क्यो मुझको लेकर दादी से तुम इतना डरती थी मा

क्या तुमको याद है अम्मा जब पढ़ने की ज़िद की थी मैने
कैसा था कोहराम मचा जब बढ़ने की ज़िद की थी मैने

बैठ कर खिड़की पर घंटो जो देखा करती थी अंबर मे
चिड़ियों सी उड़ाने की इच्छा जगती थी मेरे अंतर मे

एक बार जो मेरे मन मे था मैने तुमसे कह डाला था
बाहों मे लेकर अपनी तब तुमने मुझे सभाला था

बाबा को मनाने की हां कोशिश की थी तुमने आख़िर
पर क्यो इतनी मजबूर थी मा तुम मेरे सपनो की खातिर

फिर इधर उधर की बातों से मेरा ध्यान हटाने को
मा क्यो तुमसे कहा गया मुझे घर का काम सिखाने को

बस यू ही फिर धीरे धीरे बीत गई सब घड़िया
तुमने मुझको विदा किया पहना तारों की लड़िया

क्यो जाते जाते आशीष दिया अगले ज़नम जो आऊ मैं
बेटी नही बनकर बेटा तेरा भाग्य सजाऊ मैं

अपनी लाडो से मिलने एक बार कभी जो आओ अम्मा
इन सारी बातों का मतलब मुझको बतलाओ अम्मा

मा मैं तेरी लाडो एक बात बताओ अम्मा
समझ न आए मुझको तुम समझाओ अम्मा

1 comment:

niyati said...

Bhhavpurna rachna